Monday, May 23, 2022

बात

रुम की साईज़ थी करीब १०’X१२’ फीट, जिसमें आवाजाही के लिए एक दरवाज़ा था और बाईं और दाईं तरफ़ खिड़कियाँ थीं। बाईं खिड़की थोड़ी छोटी थी, जिसके साथ एक थ्री सीटर सोफा लगा था। एक किंग साईज़ बेड सामने वाली दीवार से सटा हुआ था और इन दोनों के बीच एक प्लास्टिक की कुर्सी किसी तरह फ़िट कर दी गई थी। बेड का एक सिरा दाएँ खिड़की तक था, जिससे बाहर के मिनी गार्डन की झलक मिलती थी।


इस रुम में करीब घंटे भर से एक महत्वपूर्ण बात चल रही थी। कितनी महत्वपूर्ण, ये आप उस रुम के लोग, उनकी उमर और उनके पोज़ से कयास लगा सकते हैं।

बेड पर तीन अधेड़ उमर वाले सर झुकाए बात सुनते और बीच-बीच में सर उठाकर कभी-कभी अपना तर्क दे रहे थे। उनमें से एक दीवार से टिककर लेटा हुआ था। बाकी दो अपने दोनों पैरों को मोड़ कर बैठे थे।


रुम के दो सीनियर सिटीज़न बहुत गम्भीरता से सबकी बात सुन रहे थे। एक बाईं तरफ़ वाली थ्री सीटर पर वज्रासन में बैठे थे और दूसरे प्राणायाम करते हुए उस सोफे और बेड के बीच वाले प्लास्टिक वाली कुर्सी पर। बाक़ी लोग जिन भावनारहित शब्दों का प्रयोग उस घर के लिए कर रहे थे वहॉं उनका बचपन बीता था। अब भले ही वो जर्जर हालत में हो पर उनके लिए तो वो घर भावनाओं और यादों का पोर्टल था।


गहमागहमी तब शुरू हुई जब दो और लोग वहाँ दाखिल हुए। उन महिला के लिए इज़्ज़त सबकी आँखों में दिख रहा था पर माहौल ऐसा बना हुआ था कि बस उनके लिए किसी तरह उस थ्री सीटर पर जगह बना दी गई । दूसरे आगन्तुक के लिए दरवाज़े के पास ही एक और प्लास्टिक की कुर्सी का इंतज़ाम कर दिया गया।


इन दोनों के उस रुम में आने से वैसे बातों में नई ऊर्जा आ गई थी। ऐसा लग रहा था कि इन्हें नए विस्तार और घर, खलिहान का ज़्यादा अनुभव था। और कुछ अल्पज्ञान, कुछ स्वाभिमान, कुछ ऐसी बातों का दुःख, सबने मिल-जुलकर दबी आग को जैसे हवा दे दी। ऐसा लगा कि मतभेद खुलकर सामने आने लगे। पर सीनियर सिटीज़नों की ख़ामोशी ने फिर से सब कुछ शांत कर दिया।


बीच बीच में एक और भागीदार का उस रुम में आना-जाना लगा हुआ था। यह आदमी बेड के बिल्कुल किनारे  बैठकर सबकी बात सुन रहा था और उसके पोज़ से उसकी दिलचस्पी झलक रही थी। ये आदमी है आपकी कहानी का सूत्रधार।


वैसे ऐसी बातों का एक बैठक में निष्कर्ष निकलना मुश्किल ही होता है। पर जहॉं पर ये बातें ठिठक सी गई वो था एक शब्द । वैसे तो सब को पता ही था कि कौन से मुद्दे पर बात हो रही है और सब चाहते थे कि सारी बातें बिना किसी खटास के हो जाए। बोलने वाले को भी उस शब्द का वजन बाद में ही समझ आया होगा। पर वाक बाण तो छूट चुका था और पहले से ही छलनी हो चुके हृदय के लिए एक वज्रपात सा कर गया वह शब्द- बँटवारा!

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