Friday, February 09, 2018

दम्भ-धैर्य

दम्भ टूटे तो होता है शोर
धैर्य टूटे तो शब्द नहीं होता।

हर रोज़ जुड़ जुड़ कर बनता है दम्भ
जीत में नए आडम्बर ओढ़ता है दम्भ
प्रतिपल नए बहाने ढूंढता है दम्भ
रोकना चाहो तो बिफ़रता है दम्भ।

मानो तो चपला, नहीं तो चट्टान है धैर्य
महत्वाकांक्षाओं की नींव है धैर्य
हर आस में हिम्मत है धैर्य
समेटना चाहो तो रेत है धैर्य।

अपने चरम पर महाबली है धैर्य
सशक्त मन को करे, वो ईंधन है दम्भ
योग कर लिया जिसने दोनों का
सफल, महान जीवन का उसने पा लिया मंत्र!

वसन्त

पिताम्बरी ओढ़े देवाधिदेव हुए प्रकट
चपला सी संगिनी थी उनके निकट
हर पीत पल्लव को कर सजग
लो देखो स्वर्णिम हुआ शरद।

हाथ पैर जुड़े कैसे एक हुआ कर रहे थे
कहीं वरदान तो कहीं दुआ कर रहे थे
इस प्रलय का न दो अब साथ,
दर्शन दो हे दीनानाथ!

संगिनी, शीत लहर बन जब हुई हावी
देवाधिदेव ने नीरद की घूंघट काढ़ी
अवनी-अम्बर जम बने हिमसागर
क्षमा देव! अब हो जाओ उजागर!

वसन्त भी कब से बाट जोह रहा था
रंगों को एक एक कर जोड़ रहा था,
स्वर्णिम छटा बिखरा, समेटो अपनी जयजयकार
अभिनंदन देव! अलसायी वसुन्धरा का हो अब श्रृंगार!

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...