Saturday, May 30, 2020

योगेश - इत्रों के शब्दकार

पिछले तीन - चार दिनों से बैंगलोर में हर शाम बारिश हो रही है।  सुबह हल्की ठंड सी रहती है और एक हल्की सी ख़ुशबू । आज सुबह का भी नजारा वैसा ही था और अपनी ही बिल्डिंग में कोई वॉयलिन की प्रैक्टिस कर रहा था। नैपथ्य में संगीत भी अक्सर कुछ मधुर यादें, कुछ पुराने सहेजे हुए दृश्य को बार बार उजागर कर देता है। ऑंखें मूँदने पर जैसे वो सब फिर से सजीव हो जाते हैं। फिर संगीत हो तो कुछ पसंदीदा फिल्मों के दृश्य और गीत भी मिश्रित हो ही जाते हैं। मेरी पसंदीदा गीतकार-संगीतकार जोड़ी के गाने भी ऐसे ही मौसम के लिए होते हैं।

जैसे फिल्म छोटी सी बात - दृश्य: कर्नल जूलियस नगेंद्र नाथ विल्फ्रेड सिंह से मदद के लिए अरुण प्रदीप बड़े ही दुर्गम रास्ते से होते हुए उनके पास पहुंचता है। कभी भी खंडाला का ज़िक्र होता है तो ज़ेहन में एक बार ये दृश्य तो ज़रूर आता है - स्टीरियोटाइप है पर आदतन ऐसा हो ही जाता है।

उस फिल्म के सारे गानों में एक टीस सी है! ऐसे गाने एक और स्टीरियोटाइप्ड गर्मी की दोपहरी और रेडियो पर बजते ऐसे गाने की याद को ताज़ा कर देते हैं।

“ वहाँ मन बावरा आज उड़ चला
जहां पर हैं गगन सलोना सावला
जाके वही रख दे कहीं मन रंगों में खोल के
सपने ये अनमोल से
यह दिन क्या आये लगे फूल हंसने
देखो बसंती बसंती होने लगे मेरे सपने
यह दिन क्या आये लगे फूल हंसने ।”

गीत योगेश के और संगीत सलील चौधरी का । कभी कभी तो यहाँ तक होता है कि अगर पता भी न हो तो ऐसा लग जाता है कि इस गीत में इनका ही जादू है। आनन्द के गाने या रजनीगंधा के गाने हों चाहे छोटी सी बात के गाने। योगेश आम आदमी की भी भाषा में उतने ही सरलगीत लिखते थे और शायद इसलिए उनके गाने ऐसे ही फ़िल्मों के लिए सटीक बैठते थे।

नीरज, गुलज़ार सरीखे गीतकार थे योगेश। शब्दावली उनके ही टक्कर की - हर शब्द गीतमय और जैसे हर गाने में एक गहरी फिलॉसफी। इनके कई गाने तो जैसे अपने साथ एक ख़ुशबू लपेटे रहते हैं। मिली का ये गाना - 

बड़ी सूनी सूनी है, ज़िंदगी ये ज़िंदगी
न कर मुझसे मन मेरे दिल्लगी ये दिल्लगी।

हर बार सुनता हूँ और हर बार जैसे शराब की बू और सिगरेट के धुएँ की घुटन महसूस करता हूँ। रजनीगंधा के गानों में, हर शब्द में उसफूल की ख़ुशबू पिरोई हुई है।

अपने ही लिखे शब्दों की तरह कल गीतकार योगेश पंचतत्व में विलीन हो गए-

कभी देखो मन नहीं जागे
पीछे-पीछे सपनों के भागे
एक दिन सपनों का राही
चला जाये सपनों से आगे कहाँ।

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