ह्रदय विदारक दृश्य न था,
ग्लानी क्यों थी फिर?
गोद में वो बिलखता भी तो न था,
मुँह फेर लिया बस,
ज़िम्मेदारी मेरी क्यूँ हो?
चेहरा बनावटी था -
हाँ बनावटी ही तो था,
आंसू सूखे होते तो
कोई चिन्ह तो होता ही ।
हमारा ही बोझ होगा,
नज़रें झुकी ही रह गयी,
कोशिश हमारी क्यों रहती,
उनके कर्म हैं, दोष हम क्यों लें?
Sunday, December 12, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)
बेकर्स डज़न
डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...
-
ज़िन्दगी की अगली राउंड के लिए , परिवार में एक और पलायन की ख़बर आई , गंतव्य - लखनऊ। उम्र के उस पड़ाव से गुज़रे दो दशक से...
-
डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...
-
उम्मीद समर उम्मीद भँवर उम्मीद सफ़र उम्मीद ही हल। उम्मीद जीवन उम्मीद किरण उम्मीद रंग बस उम्मीद ही संग। उम्मीद राग उम्मीद से आग उम्मीद विवा...