Friday, January 09, 2009

मैंने इन्ही आंखों से मौसम को बदलते देखा है...

मैंने इन्ही आंखों से मौसम को बदलते देखा है
ग्रीष्म की वो तपती धूप देखी है
आलस्य से लिप्त जाड़े की दोपहर को देखा है
बरसात की भीगी मनमोहक मिटटी देखी है

मैंने इन्ही आंखों से मौसम को बदलते देखा है
तपते शब्दों में मुरझाये हुए जोश को देखा है
छिपाई हुई सूखी मुस्कान देखी है
मरासिम के गहन पेंचों को देखा है

मैंने इन्ही आंखों से मौसम को बदलते देखा है
बेरस जिंदगी में रसभरा बदलाव देखा है
नरम शब्दों में सोज़ का इज़हार देखा है
छीटों से रंगों का निखार देखा है

मैंने इन्ही आंखों से मौसम को बदलते देखा है....

बेकर्स डज़न

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