Monday, September 07, 2015

कल रात

कल रात

हवा भीगती हुई उन बारिश की बूंदों में
भीगी धरा की बू लपेटे
झरोखों से -
बेझिझक, बेहिचक
अंदर चली आई।
कुछ जेहन की ताखों पर रखे
पिटारों को खोलती
कुछ चुनती, कुछ समेटती
फिर खिलखिलाती निकल पड़ी।



और ये जानिए कि क्या खूब थी ये अठखेली
निर्जीव से भाररहित हवा ने
कुछ यादों की धुंध में गुम, निशब्द ख़याल
कुछ अनछुए मोड़
और उन पिटारों में पड़े
छिटपुट अदृश्य सामानों का बोझ
हम पर डाल दिया
और खुद हवा हो गयी।

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...