Tuesday, October 12, 2021

दुर्ग

दुर्ग विशाल होते हैं

कमाल होते हैं

आधिपत्यअभिमान की 

मिसाल होते हैं।

दुर्ग पहचान होते हैं

शौर्यसाहस

ताकतघमंडशान होते हैं!


दुर्ग विक्षिप्त नहीं होते

ढह जाते हैं।

ईंट दर ईंट 

अक्षम होते हैं

दीवारों में

दरारें गहराती हैं,

प्राचीरों के जोड़

कमजोर हो जाते हैं

और दुर्ग ढह जाते हैं!


आज एक दुर्ग को

ढहते देख रहा हूँ!

Thursday, October 07, 2021

छोटे ही बने रहे

पहल में झिझक

 हल सबक

 शब्द में वज़न

बहाने दो दर्जन!


आगे  आना

बस बातें बनाना

खुद को रिझाना,

समझाना।


आड़ फिर ढूँढते

परतों को ओढ़ते

कश्मकश में डूबते,

विकल्प में ही घूमते।


 पीछे आगे

तटस्थ बस जमे रहे

बेख़ुदी में सने रहे,

आज भी छोटे ही बने रहे!

Sunday, October 03, 2021

मुस्कुरा दिए घनश्याम

था दम्भ और स्वार्थ का

समर घनघोर।

द्वारिका प्रासाद में

लगी थी होड़ -

दम्भ सिरहानेचरण पे स्वार्थ

शैय्या पर सोए रणछोड़।


माँगने पहुँचे थे अनुदान

संकट थी ये बृहत विकराल,

दिया विकल्प सरल सा,

खूब रहस्यमयी थी ये गहरी चाल;

एक तरफ नारायणी सेना

दूसरी ओर निहत्थे गोपाल।


स्वार्थ रहा अचल अडिग,

मॉंग लिया निरस्त्र का साथ,

हुआ दम्भ मदमस्त

बोला अनुज की नहीं टलेगी बात 

स्वार्थ की बुद्धि पे बलिहारी 

अंक लगा उसेगदगद हुए जगन्नाथ 


 किया विश्वरुप का बखान

 दिया धर्म कर्म का कोई ज्ञान

 बाँधा कोई शब्द पाश

बुनते एक और अनोखी रास,

किया उद्घोष - 

थामेंगे वो नंदी घोष की कमान

सत्यापित करते अपना समाधान 

बस मुस्कुरा दिए घनश्याम।

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...