Thursday, August 10, 2023

आ भी जाओ कि मन नहीं लगता है

वैरायटी की कमी है
हर धुन अब शोर लगता है
ख़ुशबू की परत नहीं उड़ती,
सब बड़ा बोर लगता है
टिप्पणी के बिना कपड़ों का चयन
अब एक चोर लगता है,
रंग फिर नीला है चढ़ा
बेरंग शाम और भोर लगता है।
अदरकी चाय बनाना भी
दिलोदिमाग़ पर लोड लगता है।
 भी 
जाओ
कि अब मन नहीं लगता है।

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...