Tuesday, March 22, 2022

गुटबाज़ी

हर रोज़ गुट नया बनता रहता
खेला होता आर-पार
माला जपो सोशल मीडिया पर
घड़ी-घड़ी पाओ नया अत्याचार!

हर रोज़ नया नया रंग
कभी केसरिया
कभी लाल
गोता लगाकर सने रहो
लाओ नया भूचाल!


एक रोज़ रंग फ़क़ीरी का

एक रोज़ बादशाही अमीरी का

हर जिरह जंग जैसे

मसला घरेलू और करीबी का।


वो खेल का मैदान हो

या सियासत का आखेट

दो-दो हाथ और कोई करता

खाते हैं हम फरेब!


रोज़ बँट कर

गुट लेना है चुन

काम काज सब तख़्ता पर रखकर

माथा में भरो उधेड़बुन!


हो किसी की भी समस्या

भोजन सा जाए परोसा

लड़ाई-बहस के बाद भी

बने रहो मुँहझौंसा!


रहीमन कहकर गए

कर का मनका दे डारी

फिरा जो  मनका

तो पीछे पड़े कोतवारी!



Wednesday, March 09, 2022

हाथ की सफ़ाई

सर्दियों की कुछ यादें फिर से वापस लौट आईं। एक लम्बू और दूसरा अपेक्षाकृत टिंगु की जोड़ी ने दो दशक पहले हमें बहुत आतंकित कर रखा था। इन दो कदों के इर्द-गिर्द पूरी टीम बनती थी और उस टीम से ज़्यादा अक्खड़ था उनका लीडर। हर बार इसी आस से सुबह-सुबह टी वी खोलते थे कि उन दोनों का तोड़ किसी ने तो ज़रूर ढूँढ लिया होगा।

लम्बू बिलकुल उस टीचर की तरह था जो रेखाओं और बिंदुओं के बीच पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं और टिंगु ऐसा जालसाज़ की बातों बातों में आपकी सबसे महत्वपूर्ण चीज़ हर ले। ३-० जैसी स्कोर लाइन तो जैसे नियम बन गई थी। और उस धुरंधर टीम का वो अक्खड़ कप्तान तो जैसे एहसान उतारने के लिए भी नहीं मुस्कुराए। वो टीम जीतने के बाद मुस्कान और सीधे अधरों के बीच वाली स्मर्क का अर्थ समझाती थी। एकाध हीरो कभी कभार दूसरी तरफ से भी होते थे लेकिन सारी हीरोगिरी ऐसे कलाकारों के सामने बौनी हो जाती थी।

दिसम्बर के दिन बहुत सुनहरे होते हैं और उस वक्त वहाँ सुनते हैं बहुत गर्मी होती है। तो बस छुट्टियों के मज़े लेने के लिए वो ऐसी टीम्स को बुला लेते थे और बदहाल कर वापस भेज देते थे।क्रिसमस के बाद बॉक्सिंग डे की विशिष्टता उन सीरीज़ में पता चली थी। हमारे लिए भी वो एक दो श्रृंखलाओं ने क्रिसमस और नए साल को शोकपूर्ण बना दिया था। अब तक तो आप पहचान ही गए होंगे की बात ऑस्ट्रेलियाई धुरंधरों की हो रही है जिन्होंने लगातार १५-१६ टेस्ट जीतने का रिकॉर्ड बनाया था।

पिछले दिनों उस इनविन्सिबल टीम का सबसे बड़ा महानायक अनन्त में विलुप्त हो गया। शेन वार्न! महानतम लेग स्पिनर! और भले ही वो दुश्मन ख़ेमे के हों पर फैन फॉलॉविंग इतनी ज़बरदस्त कि उस वक्त हर स्पिनर वार्न बनना चाहता था। कलाई को घुमाव देकर पैरों के पीछे से बोल्ड करने के प्रयास में जाने कितनों ने कलाईयाँ मरोड़ी होंगी।

उन दिनों क्रिकेट में एग्रेसन की बहुत बात होती थी; लेकिन हमारी टीम में जैसे सारे खिलाड़ी मर्यादा पुरुषोत्तम ही थे। कोई कितना भी छेड़े हमारे खिलाड़ी बस रहते थे वही ढाक के तीन पात। और कोई भी जमने लगता या रन बनाना शुरु ही करता तो स्टीव वॉ अपने सबसे विश्वस्त सिपाहसलार को गेंद थमा देते। फिर शुरु होती फिरकी की धुन पर द्रुत ताल - कभी पैरों से ब्लॉक, कभी गेंद को अंत तक देखकर छोड़ने की क़वायद! हम तो यहॉं तक बात करने लगे थे कि डॉउन अन्डर श्रृंखला को अमान्य घोषित कर देना चाहिए। कई दिग्गज टीम्स वहाँ जाकर धराशायी, निराश, हताश लौटी थी। 

हताश आदमी कई मनोदशा से गुजरता है - गुस्सा, अस्वीकृति (डिनायल), उदासीनता (इनडीफरेन्स) और फिर मौन। हम शायद आख़िरी लेवल में थे इसलिए वार्न की चमत्कारी हाथ की सफ़ाई को बस मूक होकर देखते थे। कई सालों बाद जब हार के ज़ख़्म भरे तब वार्न की महानता का ज्ञान हुआ।

एस सी जी, एम सी जी, बी सी जी - नहीं ये नाम नहीं था शायद! पर क्या फ़र्क़ पड़ता है कोई भी ग्राउंड हो ऑस्ट्रेलियाई टीम से मैच खेलने के बाद क्या सी और क्या जी! इतने बड़े बड़े मैदान, कि छक्का मारने के लिए स्टेरॉयड्स का सेवन अत्यावश्यक हो जाए। हालिया वर्षों में जब क्रिकेट और क्रिकेटर दोनों ही भीमकाय हो गए हैं तब जाकर एकाध छक्के लगने शुरु हुए हैं। एस सी जी में वार्न की फिरकीपर हमारी टीम कुछ ज्यादा ही थिरकती थी। पर हॉं, वही शेन वार्न का एशियाई रिकॉर्ड उनके बाकी रिकॉर्ड से थोड़ा उन्नीस प्रतीत होता है। इसका मुख्य कारण है क्रिकेट लेगसी में वो सचिन और वार्न वाली स्वर्णिम रिवैलरी! 

शेन वार्न - जादूगर, श्रेष्ठतम स्पिनर, और जाने कितने नामों से उन्हें जाना जाता रहा है। उनके पलायन की ख़बर इतनी अचानक थी कि पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ; फिर जैसे यादों का सैलाब सा ही आ गया। लोगों ने उनके विकेट्स के वीडियो फार्वर्ड करने शुरु किए तो लगा जैसे वो सारे मैच अभी कुछ दिन पहले ही तो देखे थे। वार्न ख़ुद कुछ घंटे पहले तक ट्वीटर पर सक्रिय थे और फिर अचानक से क्षणभंगुर जीवन को सत्यापित करती देखिये कैसी डिवाइन गुगली! उनके हुनर के तो हम सभी कायल थे लेकिन मेरी यादों में वो दिसम्बर की ठंड के आतंकी ही रहेंगे।

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...