Thursday, January 31, 2019

सहर और यादें

एक पुरानी दोपहर का मंज़र आँखों में ठहर गया
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|

वो मसूर के पकने की खुशबू,
खिलखिलाता बचपन,
सुदूर विविध भारती पर बजते
गानों की तान,
छत के छप्पर से छनती धूप
जाने कितने पलों का वो मंज़र आखों में ठहर गया
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|


खिलखिलाने पर पाबंदी वाली झिड़क,
धूप में नहीं खेलने की हिदायत
बेबात शोर पर एकसुरी शशशश,
और फिर से वो बेकही हंसी
हैफ कि वो मंज़र ही क्यों नहीं ठहर गया!
कल यादों की बोझ में वह सहर गया|

बेकर्स डज़न

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