Friday, May 17, 2013

Spirit

यूँ ही कब कहाँ ये जीत पाती
हर मोड़ पर सकुचाती
हर चोट पर मुरझाती
एक नज़र पडे तो इतराती

अनजान कभी इसे है भाता
एक रंग ही कभी रम जाता
कभी प्यास इसे जगाती
गहन सोच कभी थपथपा जाती
कभी कोई बात ठेंस लगाती

फिर खुद ही अकुलाती, इतराती
संभल जाती,
यूँ ही कब कहाँ ये जीत पाती।
 



आज मैं...

आज मैं गूँज हूँ
एक ऐसा शक्तिपुंज हूँ
उठा दूं, जगा दूं
संकोच तोड़ने की कुंज हूँ .


आज मैं सोच हूँ
मंथन हूँ
चिंतन हूँ
निशब्द क्रंदन हूँ
पाश नहीं, पर बंधन हूँ।


आज मैं रंग हूँ,
बेरंग को दर्शनीय बना
आज उसके संग हूँ
खूब ठठा कर, विहंग हूँ
खुद में डूबा हूँ, मलंग हूँ।।

Tuesday, January 01, 2013

तिरस्कार

इतिहास के पन्नो में है बदा,
रामायण-महाभारत भी करते इसका बखान
आर्यावर्त के शूरों ने कब किया है औरत का सम्मान .

वस्त्र हर कर मार ठहाके
लज्जा भी हुई घोर सभा में नीलाम
आर्यावर्त के शूरों ने कब किया है औरत का सम्मान .

जग पूजता उनको, पुरुषों में मर्यादा में उत्तम
जाने वो हुए कैसे महान
हो ना पाया जब उनसे अपनी ही भार्या का सम्मान

युग बदला, लोग बदले
हीन सोच पर लगा नहीं पुण्याविराम
पवित्र सति के नाम जाने कितनो के फूंके प्राण
देवदासी बना कुचले कितनो ने उनके अरमान
आर्यावर्त के शूरों ने कब किया है औरत का सम्मान .

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...