शूल बिछाया,
जाल फैलाया,
फुसलाया-धमकाया,
लालच भी रखा साथ में,
हैफ की ना आया वो हाथ में!!
खेले सारे दांव पे दांव,
कई इक्के,
कितने गुलाम;
आँखें बिछाए,
घुटने टिकाये
गिरा रहा बस सामने
हैफ की न आया वो हाथ में!!
व्यग्र जब न रह सके,
मूल अर्थ समझ,
पृथक पड़े;
दक्ष बन -
भीगते ज्ञान की बरसात में,
हैफ की अब क्यूँ आया हाथ में!!!
Friday, September 18, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)
बेकर्स डज़न
डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...
-
ज़िन्दगी की अगली राउंड के लिए , परिवार में एक और पलायन की ख़बर आई , गंतव्य - लखनऊ। उम्र के उस पड़ाव से गुज़रे दो दशक से...
-
डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...
-
उम्मीद समर उम्मीद भँवर उम्मीद सफ़र उम्मीद ही हल। उम्मीद जीवन उम्मीद किरण उम्मीद रंग बस उम्मीद ही संग। उम्मीद राग उम्मीद से आग उम्मीद विवा...