Monday, July 09, 2012

आजकल मुझे भी डर लगता है

आजकल  मुझे भी डर लगता है
उम्मीदों  की क़तार देख डर लगता है
दबे हुए शब्दों में एक दबी हुई ज़िन्दगी देख डर लगता है
हर दौड़ को पीछे खींचते सोच से डर लगता है
आस भरी आँखें देख डर लगता है
डर  मिटटी भरे उन सोने के बर्तनों से लगता है .
जो थे मार्गदर्शक उनको भटकते देख डर लगता है .
ढकोसली  हँसी , बनावटी चेहरे देख डर लगता है
गलतियों को पर्दा डालती बातों से डर  लगता है
अवरोधरहित बहाव में पेचीदे मोड़ों को देख डर लगता है .

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...