Thursday, January 26, 2023

चाय में चीनी

सुनते हैं चाय हिन्दुस्तान में सदियों पहले किसी बाह्य गाँव से आया था। पढ़ने पर पता चलता है कि ये अंग्रेजों की तिजारत वाली चाल थी, चीन के एकाधिकार को ख़त्म करने के लिए। असम, दार्जिलिंग से होकर मुन्नार, कुन्नूर जैसे हिल स्टेशनों में चाय की खेती शुरु कर दी। इतिहास में चाय से शुरु हुई क्रांति का भी ज़िक्र है जिसे हम बॉस्टन टी पार्टी के नाम से जानते हैं। बस फ़र्क़ ये था कि उस पार्टी में चाय से लदे पूरे जहाज़ को ही डूबो दिया गया था।

पर हमने कभी चाय को पराया समझा ही नहीं तो कैसे वैसी कोई क्रांति होती, बल्कि हमने चाय को अपनाकर अपने ही रंग में ढाल लिया। हिन्दुस्तान में तो अलग-अलग प्रकार की मसाला चाय ही है; और ये तो बस एक वैरायटी है अपने यहॉं अदरक चाय, इलाइची चाय, दूध चाय, लेमू चा, पेड़ा चाय, जाने कितने और वैरायटीज़ हैं।

अलग-अलग पर्सनालिटी को अलग-अलग ढंग की चाय पसंद आती है। जितने रंग, नाक-नक़्श उतनी तरह की चाय। और फिर एक शौक़ आजकल कामकाजी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर का भी है - चाय की प्याली के साथ मध्यमा और तर्जनी में फँसा कर सूट्टे का। क्या दृश्य प्रस्तुत करता है ये, आहा हा! जैसे कोई दार्शनिक गूढ़ रहस्य के विश्लेषण में अन्तर्धान हो।

अब इतना बड़ा पात्र परिचय तो ज़रूरी था क्योंकि हमें बताना था कि हमारी सुबह की चाय की धाक है। चायपत्ती, चीनी, दूध और पानी का अनुपात उतना ही ज़रूरी होता है जितना अदरक को ग्रेट करने का। पीसे हुए अदरक से वो स्वाद आ ही नहीं सकता जो ग्रेट किए हुए से - आप चाहे जितना फ़िज़िक्स, केमिस्ट्री का ज्ञान बाँचें, जो सत्य है वही तथ्य है। अब अमूमन दो जन के लिए चाय बनाने के लिए ज़्यादा मेहनत तो है नहीं; और कलाकार कोई दर्शक गिन कर थोड़े ही कला का प्रदर्शन करता है। बस मौक़े की ताक में रहता है, फिर क्या दो और क्या चार!

हमारा ये वाला कॉन्फ़िडेंस लेकिन एक दिन हिल गया। उस दिन हम कुल चार लोग ही थे और हमें मौक़ा दिख गया। अनुपात और समानता, माने रेशियो और प्रपोरशन बस इसका ही तो खेल था - और ऐसे कितने सवाल तो हमने मुँह-ज़बानी बनाये थे। कुशल-क्षेम पूछने तक तो किसी तरह अपने उल्लास को थाम कर रखा, पर जैसे ही बात खाने खिलाने की आई हमने अपने बेटर हाफ़ को कहा कि हम सम्भाल लेंगे। होम ग्राउंड का एडवांटेज, और हमारे मैथ्स का ज्ञान - गलती होने की तो कोई गुंजाइश ही नहीं थी।

हमने फटाफट कुछ नमकीन, लड्डू इत्यादि डाल वाय का इंतज़ाम किया और लग गए अनुपातिक हिसाब में। दो लोग अगर चाय में दो चम्मच चीनी लेंगे दो चार लोगों के लिए…। चलिए चाय तो बन ही गई और अच्छी ही बनी होगी क्योंकि किसी ने चाय के स्वाद को लेकर कुछ भी टिप्पणी नहीं की। पर कुछ लोग होते हैं न, सर्वज्ञ, स्थितप्रज्ञ जिनका काम बस मीन मेख ही निकालना होता है - हमारे मेहमान उस दिन उसी कैटेगरी वाले थे। उनके सवाल ने हमारे चाय बनाने की कला को कुछ यूँ क्षत विक्षत कर दिया कि हम आज भी चीनी के डब्बे को खोलने से पहले उस सवाल की गूंज से ठिठक जाते हैं - आप चाय में चीनी पहले डालते हैं या लास्ट में!

Saturday, January 07, 2023

अब वो बातें बनाना सीख रही है

दो में दो जोड़ पाँच कर रही है,
मीठी चाशनी में घोल
जबेली सी मोड़ दे रही है;
आँखों को गोल-गोल कर
हाथों को इधर-उधर फेंक,
शब्दों में भाव भर रही है,
अब वो बातें बनाना सीख रही है।

क़िस्से गज दो गज से,
कभी हल्केकभी भरकम

तौलकरकभी नापकर

आड़े-तिरछे कभी बुनकर,

अपने भुने मसालों को 

जैसे चखकर;

रसीले पकवान परोस रही है,

अब वो बातें बनाना सीख रही है 

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...