Wednesday, February 16, 2011

रंगरेज

नील नदी के पानी मे
एक ग़ज़ब सा उबाल उठ आया है
टूनिसिया की गलियों से लेकर
मिस्र का तहरीर उबल आया है।
अल्गेरिया, येमेन सब हुए हैं शामिल,
रुकना लगता है अब मुश्किल...
ये क्रांति तो फिजा बदलने आया है।

हमारे वतन का मौसम देखिये,
सर्द माहौल यूँ छाया है,
लूट-खसोट की हवा है बहती -
घोटाला, भ्रष्टाचार गहन घिर आया है...
लेकिन यहाँ कैसे हो क्रांति,
कैसे आये वो उबाल,
जब विचार ही अपना अँधा है...
उबले पानी भी कैसे,
जब नील नहीं यहाँ -
कावेरी, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, यमुना...गंगा है।

Sunday, February 06, 2011

इतवार की दोपहरी

इतवार की दोपहरी, हमने सोने का जब प्लान किया
आसपडोस के बच्चों ने भी उसी वक्त खेलना आरम्भ किया,

बल्ले-गेंद के शोर मे,
जब क्रिकेट स्टेडियम का माहौल खड़ा किया,
उसी चिल्लम-चिल्ली मे, नींदिया हमारी हुई खफा,
उखड, बिगड़कर आखिर उसने भी पलकों का साथ छोड़ दिया।

इस पर भी हमने नहीं छोड़ी हिम्मत,
जोर से बंद कर आँखें, कानोंको भी बंद किया,
मनमोहक दृश्य याद करके,
निंदिया रानी का आह्वाहन किया...
हस रही थी कोने मे छुपकर,
मेरी हरकतों ने जैसे उसे झकझोर दिया -
अलसायी सी उठी वो किस्मत,
मेरी हारी सी हालत पर आखरी वार किया।
उसी के इशारे पर जैसे
हमारा फोन अनायास ही बज उठा,
लोन की दुहाई देती एक महिला के स्वर ने,
रहा-सहा कसर भी पूरा कर दिया।
हाय री किस्मत!! तू बड़ी सयानी ,
उठ-बैठकर, आखिरकार हमने भी स्वीकार किया।

Friday, February 04, 2011

गिलौरी का ज्ञान

गिलौरी का जब जिक्र चला
जोश हमारा परवान चढ़ा -
सुपाड़ी, तम्बाकू का ज्ञान नहीं
मीठे का ही बस शौक रखते हैं,
पर शब्दों के जब बाण चढ़ें
तो अर्थ-शून्य शास्त्रार्थ का भी हुनर रखते हैं ।

फिर वाकयुद्ध के इस समर मे
खोखली श्रेष्ठता का बाण हमने ताना
कहा - ज्ञान जहाँ है ही नहीं
वहां बेतुक, बेख़ौफ़ बोलते निकल जायेंगे
बिन बाधा, अवरोध बिना
एकाकी राज बजाते बढ़ जायेंगे ।

इस वजनदार संवाद का हम
अभी आनंद भी न उठा पाए थे -
की भीमकाय उपहास भरे शब्दों से
हुआ हमारा काम तमाम ।
सच ही कहा था किसी संत फकीर ने -
गिलौरी खाया कर गुलफाम,
जुबां पर रखा करती है लगाम ।

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...