Sunday, February 06, 2011

इतवार की दोपहरी

इतवार की दोपहरी, हमने सोने का जब प्लान किया
आसपडोस के बच्चों ने भी उसी वक्त खेलना आरम्भ किया,

बल्ले-गेंद के शोर मे,
जब क्रिकेट स्टेडियम का माहौल खड़ा किया,
उसी चिल्लम-चिल्ली मे, नींदिया हमारी हुई खफा,
उखड, बिगड़कर आखिर उसने भी पलकों का साथ छोड़ दिया।

इस पर भी हमने नहीं छोड़ी हिम्मत,
जोर से बंद कर आँखें, कानोंको भी बंद किया,
मनमोहक दृश्य याद करके,
निंदिया रानी का आह्वाहन किया...
हस रही थी कोने मे छुपकर,
मेरी हरकतों ने जैसे उसे झकझोर दिया -
अलसायी सी उठी वो किस्मत,
मेरी हारी सी हालत पर आखरी वार किया।
उसी के इशारे पर जैसे
हमारा फोन अनायास ही बज उठा,
लोन की दुहाई देती एक महिला के स्वर ने,
रहा-सहा कसर भी पूरा कर दिया।
हाय री किस्मत!! तू बड़ी सयानी ,
उठ-बैठकर, आखिरकार हमने भी स्वीकार किया।

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