Sunday, April 12, 2009

गुज़रा जमाना याद आता है

मेरा उसको कनखियों से देखना बार बार
और उसका वो मुस्कुराना याद आता है

मेरी उठती गिरती सी साँस
और उसका हवाओं की तरह इतराना याद आता है

कस्तूरी जैसे दिन महकते थे
मेरी रातों का गुनगुनाना याद आता है

आंखों का वो बेपरवाह मिल जाना
और उनका अनायास ही झुक जाना याद आता है

रातों को तनहा याद में किसीकी
धुआं उडाता एक दीवाना याद आता है

जो कह न सके वो फ़साना याद आता है
गुज़रा हुआ दिलकश ज़माना याद आता है

PS: Inspired ;)

No comments:

Post a Comment

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...