Sunday, October 20, 2019

अलट पलट

अलट पलट
कभी पलट अलट
नट के जैसा
थिरक थिरक
इस करवट
कभी उस करवट,

अपनी नन्हीं काया को
कभी सिकुड़ सिमट
हाथ पैर को छिटक छिटक
कभी बनाती उस काया को
विकराल विकट।

सुबह लातों घूसों की
खटपट
नींद भगाती जैसे 
झटपट
पर ऑंख खुलतेमिलता
एक उपहार विशेष,
अबोधनिश्छल
मुस्कान निष्कपट!

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