उसकी आंखों में मैं चोर देखता हूँ,
और दाढ़ी में तिनका -
खुल कर हस्ते हुए भी,
कनखियों से झांकता है।
सवाल सीधे नहीं कभी,
बड़े पेचीदे करता है।
घुमा कर जलेबियों सी,
बातें भी तो चाशनी में डूबो कर करता है।
नज़रें जमाना कहाँ सीख पायेगा वो,
आँखों से जब वैसे करतब करता है।
क्या नापता है, जाने क्या तौलता है -
शब्दों के वज़न?
फिर कांट-छांट भी तो मन में ही करता है।
सवालों के जवाब की जगह,
क्या मंद मुस्कान बिखेरता है।
पीली दाल में तैरता हुआ,
कुछ काला है सिर्फ, कि है पूरा छौंका?
उसकी आँखों में मैं चोर देखता हूँ
और दाढ़ी में तिनका।
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