Saturday, February 08, 2014

ख्वाबगाह का पंजीकरण


राजू (या वो रवि था !) मुस्कुराते हुए निकल गया. बाहर से उस छोटे बच्चे की चीख़ अब भी आ रही थी।  पता नहीं उस बच्चे को क्या हो जा रहा था जैसे ही उसके पापा ऑफिस के अंदर आते वो बाहर से चिल्लाना शुरू कर देता ! 

ये दफ्तर है सब-रजिस्ट्रार, बीटीम का, जहाँ प्रॉपर्टी और शादी का पंजीकरण होता है।  हमने अपना मैरिज सर्टिफिकेट बनवा लिया था इसलिए अब अपने सर पर छत सुनिश्चित करने आये थे।  सुबह से हम इस पूरी पद्धति को समझने का प्रयास कर रहे हैं।  हमारे बिल्डर का जो प्रतिनिधि आया है उसने हमें एक कोने में बिठा दिया है और खुद बला की फुर्ती दिखा रहा है।  बीच बीच में वो हमें देख कर एक औपचारिक मुस्कान भी दे रहा है।  जाने किधर जाता है , किन लोगों से बात करता है और फिर हमें आकर अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी और कन्नड़ में समझाता है।  उसे ये सारा क्रम या तो याद हो चुका है या फिर उसने इसकी बहुत अच्छी प्रैक्टिस की है।

इस पूरे केओटिक माहौल में लोगों का उस दफ्तर में आवागमन निरंतर जारी है।  और इसी सैलाब में वो irritating बच्चा भी शामिल है।  अगर एक निस्पक्ष नज़र से देखें तो बच्चा बड़ा मासूम है लेकिन उसकी एक कर्कश चीख, उसकी मासूमियत और उसके साथ आपका उसके प्रति उमड़ता लाड, आपसे छीन ले जाती है। उसकी माँ ने उसे एक आई-पैड पकड़ा दिया है ताकि वो शांत हो पाये लेकिन थोडा उसके जीन्स का असर कहें और थोडा उसकी रूचि, बीच बीच में उसकी चीख आपके धैर्य को झकझोर देती है।

आखिर हमारा काम कुछ आगे बढ़ता है और गणेश, बिल्डर का प्रतिनिधि, हमें आकर इसकी खबर देता है।  और हमें ये भी बताता है कि इस रजिस्ट्री को सत्यापित करने के लिए दो विटनेस चाहिए।  अब इस भीड़ में हमसे ऐसे सवाल पूछना या तो हम गणेश का अबोधपन कहते या उनकी मज़ाकिया फितरत - कि भैया ये तो विटनेसों का महा कुम्भ है किसी को भी पकड़ लो।  मगर जब उन्होंने ये बात बहुत ही गम्भीरता से दुहराई, हमे समझ आ गया कि यहाँ किन्ही विशेष शक्ति प्राप्त किरदारों की बात हो रही है।  और यहीं पर राजू और रवि प्रकट होते हैं।  इनमे से कौन राजू है और कौन रवि हमने ये जानने कि जिज्ञासा जाहिर नहीं कि और न ही इन महानुभावों ने बताने कि कोशिश की।  इन शक्तिमानों का बस इतना काम होता है कि ये आपके सेल डीड पर आपसे बिना पूछे अपना हस्ताक्षर दाग देते हैं और अपने इस शौर्यपूर्ण कार्य के पश्चात मुस्काते हैं।  यहाँ पर ये बताना ज़रूरी है कि इस मुस्कान को औपचारिक न समझें। वैसे भी मुस्कान का विशेषार्थ आप खुद नहीं समझ सकते और हमारी इस गुत्थी को सुलझाई गणेश ने - वो भी बिलकुल शब्दहीन विश्लेषण।  आँखों के इशारे को हम जितना समझे इससे यही ज्ञात हुआ कि इसका हिसाब बाद में होना है।

अब इन सब घटनाओं के बीच में हमें भी एक बार हीरो बनने का मौका दिया गया।  और हमने पूरी गम्भीरता से अपने किरदार को निभाया।  हुआ यूँ कि राजू या रवि में से कोई एक (पता नहीं कौन) अन्तर्धान हो गए थे और विटनेस कि कमी पड़ गयी थी। उस भीड़ में हमें उम्मीदवार बना दिया गया और काफी सरलता से हमारा चयन भी हो गया।

सवाल: हेसरू (नाम कन्नड़ में)
जवाब: बिकाश कुमार (गम्भीर आवाज़, बिलकुल किरदार में आते हुए)
एड्रेस: बेल्लंदुर

बस यही २ सवालों के जवाब देकर हम जूनियर आर्टिस्ट से सपोर्टिंग कास्ट के पायदान पर चढ़ गए।  इस लघु भूमिका के पूरा होते ही हमारा भी काम हो गया था और गणेश को सधन्यवाद उनकी फीस (जिसमे राजू और रवि के स्पेशल अपीयरेंस का मेहनताना भी था) देकर हमने सब-रजिस्ट्रार ऑफिस का निकास पकड़ा।  थोडा ख्वाबगाह अपने नाम करवाना और थोडा सपोर्टिंग कास्ट का किरदार बखूबी निभाने का गुमान कहें, हम अपनी छाती को २ इंच चौड़ा महसूस कर रहे थे।  

2 comments:

  1. Bikash, Hillarious !! Seriously. And congratulations for the registeration.

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