Wednesday, May 11, 2011

अक्स

यूँ पैर पसारे बिस्तर पर
विचारों के घोड़े जब दौडते हैं
कुछ अधपके ख्याल जब आते हैं
कुछ मधुर सोच जब फबते हैं.
मंद-मंद मुस्कान भरे
जब नींद के झोंके आते हैं
उनका चेहरा क्यूँ बनता ही नहीं,
जब कई चेहरे पटल पर छप जाते हैं.

कुछ श्वेत-श्याम जुड़-तुड़कर
शकल मूरत तो बन जाते हैं
पर वो ख़ुशी कहाँ दिखती उनमे
वो चमक कहाँ खिलती उनमे.
कभी ऐसा ख्याल भी आता है
दिल से बस देखा...अच्छा था
आँखों से गर देखता उनको
ये शब्द यूँ नहीं बुनते शायद
एक काव्य प्रसंग बनता शायद!!

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