Wednesday, July 08, 2020

मुनीम बनाम साबू


उस दिन सुबह से ही ‘मुनीम’ को देखकर मन चिड़चिड़ाया हुआ था। वो हरकतें भी वैसी ही करता था। जैसे एल ओ सी पर अक्सर होता है कि थोड़ा सा हो हल्ला मचा कर, आगे पीछे करके पाकिस्तानी भाग जाते हैं, ठीक वैसे ही। और कुछ दिन पहले  ही हमारी जिरह हुई थी जो छोटी मोटी तो थी नहीं। सब मिल-जुलकर हमारे पारे को क्वथनांक की ओर धकेल रहे थे। 

हुआ ये था कि एक महीने में साईंस एक्ज़ीबिशन होने वाला था और क्लास सेवन बी से हम दोनों ने भी हिस्सा लेने का मन बनाया था। कुछ दिन पहले हाइड्रॉलिक पंप्स के बारे में पढ़ाया गया था। हम और मुनीम उस पर बातें कर रहे थे। उस दिन ही साईंस एक्ज़ीबिशन की नोटिस लगी थी और हर किसी को कोई बढ़िया आइडिया देना था। 

वैसे हम दोनों मेधावी छात्रों की श्रेणी में आते तो थे नहीं लेकिन अब आसमानी साज़िश ये सब थोड़े ही न देखती है। हमारे क्लास के दिग्गज लगे पड़े थे कुछ बड़े और बढ़िया आइडियाज़ में। और उस आसमानी साज़िश के तहत मुनीम और हम उस दिन साथ थे - शायद हमने होमवर्क नहीं किया था या वैसा ही कुछ जिसके कारण हमें पीछे बेंच पर खड़ा कर दिया गया था।पता नहीं कैसे हाइड्रॉलिक्स पर बात छिड़ी और हम दोनों ने मन बना लिया कि इस बार हम भी इस दिमाग़ी दंगल में अपना ज़ोर आज़माएँगे।

मुनीम ने उसी दिन से अनुसंधान शुरु कर दिया था और एक किताब से जानकारी उठाकर पंप के मॉडल की पूरी तरह से कल्पना कर ली थी। गूगल उन दिनों शायद अपने गैरेज में ही पनप रहा होगा और ऐसी अबोध परिकल्पना को साकार करने के लिए या तो किताबें, नहीं तो किसी टीचर से ग्रीन सिग्नल लेना पड़ता था। हमने सोचा पहले मॉडल ही बना लेते हैं और फिर वर्किंग मॉडल पर कौन ना नुकुर करता। किताब में वैसी विस्तृत जानकारी थी नहीं तो हमने ख़ुद ही मॉडल का परिमाण सोच लिया। एक फुट लम्बा सा कनिस्तर होगा, चौड़ाई मान लो दो बटा दो इंच, जिसका निचला हिस्सा पानी के टब में खुलेगा और उपर एक पिस्टन के साथ हैंडल उसमें फिट करवा लेंगे। बस हैंडल उपर नीचे करके दिखा देंगे कि उस एनर्जी को आप किसी भी चीज़ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

मुनीम ने कनिस्तर का काम अपने जिम्मे लिया और मेरे हिस्से आ गया पिस्टन का काम। अब ख़ुद पढ़ाई कर पिस्टन बनाने के लिए जब हम फ़िज़िक्स में घुस गए तो दिमाग़ ठनका कि अपनी क़ाबिलियत के परे है ये काम। झुंझलाहट और चिड़चिड़ाहट के मिश्रित भावावेश में हम चले मुनीम के घर। वहॉं पहुँच कर देखा कि मुनीम हमसे दो कदम आगे रहकर न सिर्फ़ कनिस्तर तैयार करवा चुका है बल्कि ऊपरी हिस्से में एक ड़बड़ा छेद भी करवा चुका है। चूँकि ये तो प्लान में था ही नहीं हम भड़क गए। आदमी जब अपनी ख़ामियों को, अपनी सीमाओं को स्वीकार नहीं कर पाता तो गुस्सा उसका सबसे सरल निकास होता है। हमारे साथ भी वही हुआ। बिना मुनीम का तर्क सुने हम उस पर बरस पड़े। फिर क्या, काफ़ी देर तक अहं, बेतुके बहस में उलझ कर चिल्लाता रहा। कभी कटाक्ष, कभी कर्कश शब्द टकराते रहे, बस गाली गलौज ही बाकी रह गया था। एक दूसरे की समझ और बुद्धिमत्ता को कुछ देर कोसने के बाद हम वहाँ से निकल पड़े। और इस तरह से प्लान विफल हो गया और हमारी दोस्ती में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान सरीखा खटास आ गई।

उस दिन मुनीम किसी बात को लेकर खिसिया हुआ था और हमारे दर्शन ने आग में घी का काम किया हो शायद। बस हर छोटी बात पर कुछ नोक-झोंक होने लगी। उपनामों से हर किसी को चिढ़ होती है और मुनीम को अपने नाम से ख़ासा चिढ़ थी, ठीक जैसे मुझे अपने दूसरे उपनाम 'विक्स' से। उस दिन मुनीम ने ये महापाप कर ही दिया और क्लास के दूसरे छोर से ‘विक्स’ चिल्लाता हुआ भागा। इतनी देर से छिटपुट गोलीबारी के बाद ये तो जैसे उसने हॉविट्ज़र ही दाग दिया था। हम दौड़ कर उसकी ओर लपके, मुनीम का गला पकड़ कर उसे दीवार पर टीका दिया। फिर ख़ुद ही सहमते हुए उसे छोड़ दिए। हुआ ये होगा कि हमने हाथापाई तो यदा-कदा ही की थी तो इतना भी साहस नहीं बन पड़ा कि किसी को घूँसा रसीद दें। फिर प्रिंसिपल की खजूर की छड़ी और उनके गाउन की रस्सी की मार भी यकायक दिमाग़ में कौंध गई होगी और हमने मुनीम को स्वत: छोड़ दिया होगा।हालाँकि जितना असर होना था वो हो गया था। मुनीम चुपचाप कुछ देर सुबकता रहा और फिर कुछ दिनों तक हम एक दूसरे के सामने भी नहीं आए।

कुछ कहानियाँ जहॉं खत्म होती हैं किंवदंती वहॉं से शुरु होती हैं, खासकर अगर प्रत्यक्षदर्शियों की कल्पना असीम हो। किंवदंती ये हो गई कि मुनीम को विक्स ने दीवार पर दो फ़ीट उपर टांग दिया और धमकाया कि फिर उस उपनाम से उसे कभी नहीं पुकारे। ऐसी माचो इमेज अगर कम से कम ताकत व्यय कर मिले तो कोई सच क्यों बयान करे। कम से कम स्कूल के दिनों के लिए इसका फ़ायदा तो बहुत हुआ। इसमें कुछ योगदान इस मसालेदार वाक़या का था, कुछ हमारे कद और कुछ सर मुंडवाने की हमारी फ़्रीक्वेंसी का जिससे हमें एक नया उपनाम मिला - साबू।

1 comment:

  1. Bahut khub !!!
    आदमी जब अपनी ख़ामियों को, अपनी सीमाओं को स्वीकार नहीं कर पाता तो गुस्सा उसका सबसे सरल निकास होता है।

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