Monday, March 26, 2012

कल रात नींद नहीं आई

कल रात नींद नहीं आई
लगता है ज़िन्दगी ने अपना बोझ बढ़ा दिया था
बोझ और भार में यही फर्क होता होगा -
भार से सुनते हैं कोयला हीरा हो जाता है,
और बोझ से शायद कोयला धूल!!
बात वहीँ रुक जाती तो हवा हो जाती,
कुछ पनपता जेहन में और नींद में घुल-मिल जाता,
पर कुछ सिसकियों ने बात जकड ली,
कुछ घुला नहीं, धुला नहीं
और हवा हुई तो वो हुई नींद. 

No comments:

Post a Comment

बेकर्स डज़न

डी की अनुशंसा पर हमने फ़िल नाइट लिखित किताब “शू-डॉग” पढ़ना शुरु किया। किताब तो दिलचस्प है जिसमें नाइट ने अपने जीवन और संघर्ष की विस्तृत जानक...