Tuesday, December 08, 2009

मेरा सिटी बैंक क्रेडिट कार्ड: जय हो !!!

सन २००९, इतिहास में ऐसे साल के नाम से जाना जाना चाहिए, जिसमे हमारे घूमने की योजनायें तो बहुधा बनी लेकिन कार्यान्वित एक भी नही हुई। अब हुआ यूँ की हमने अपने भाइयों और कुछ दोस्तों के साथ लदाख देखने की योजना बनाई थी । शुरुआती जोश कहिये या कुछ और हमने ताबड़ तोड़ तय्यारी कर ली। एक रे-बैन का नया चश्मा, कुछ नए कपड़े (गर्म कपड़े) और एक नया बैग। इससे हमारे क्रेडिट कार्ड का बिल थोड़ा सर से ऊपर निकल गया। आजकल के नौजवान कहाँ चादर की फिक्र करते हैं। अब जब पैर लंबे हो जायें तो चादर ही बदल लेते हैं, फ़िर जितना पैर पसारना है पसारें । और जब सिटी बैंक का प्लैटिनम कार्ड हो तो उधार की चादर अनंत से भी लम्बी लगती है ।

और हुआ वही जिसका अंदेशा भी नही था - हमारे हिन्दी सफर की योजना अंग्रेज़ी सफर बन गयी। किसी कारणवश हम लदाख न जा सके और अगले २ महीने तक हमने उस बिल का भुगतान किया। जी हाँ दुनिया की क्रेडिट क्राइसिस में जो भी थोड़ी बहुत राहत दिखी है वो हमसे ही है।

इस बीच हमारी कंपनी ने भी हमे आयरलैंड भेजने की योजना बनाई । हमसे कहा गया था की एक दिन की नोटिस पर सफर के लिए तैयार रहे। अब ऐसे नोटिस अगर बीवी दे तो आपके हाथ पैर बंध जाते हैं (ऐसा सुना है, क्यूंकि भगवन की कृपा से हम अभी भी कुंवारे हैं ) और आप भीगी बिल्ली बन मोहतरमा की आज्ञा का इंतज़ार करते हैं। लेकिन अब ऐसी नोटिस कंपनी की हो और वो भी विदेश जाने की तो कुछ बाहर जाने का जोश और कुछ तो शौपिंग करने का बहाना आपको अपने क्रेडिट कार्ड से दूर नही रख सकता । हमने फ़िर ताबड़ तोड़ खरीदारी की और एक क्या आधे दिन के नोटिस पर जाने के लिए तैयार हो गया। पर कहते हैं न की किस्मत में हो "@#$%" तो कैसे मिलेंगे पकौड़े। जी हाँ ये योजना भी हमें और हमारी कार्ड को धता बता कर हवा हो गयी ।



फ़िर एक योजना बनाई पांडिचेरी देखने की। इस बार हमने अपने दोस्त का क्रेडिट अकाउंट का इस्तेमाल किया। बस उधारी के पैसों में पूरा शहर देखा। लौटते वक्त जैसे हमारी उधार की ज़िन्दगी का भार ऊपर वाले को ज़रा हल्का लगा और उन्होंने हमारे वाहनको मटिया मेट कर दिया। बस एक दुर्घटना - अब छोटी कहें या बड़ी, ये यहाँ पर कहना उचित नही होगा - और हमारी क्रेडिट की दुनिया में १-२ सितारे और जुड़ गए।

अब जब इतना कुछ हो जाना था तो गोवा का प्लान क्यूँ पीछे रहे? नवम्बर का महिना आया नही की हमने बड़ा दिन गोवा में मनाने का प्लान बनाया। सारे दोस्त फ़िर से तैयार और हम तो उनसे २ कदम आगे ही। उड्डयन उद्योग भी हम जैसे बेवकूफों के लिए आँखें बिछाए बैठा रहता है। तो हम क्यूँ अपने को कम आंकने दें - झटके में रिटर्न टिकट बुक कर लिया और गोवा के मनमोहक बीच के सपने देखने लगा। लेकिन चूँकि सन २००९ में सफर बस ख्यालों में लिखा था इसलिए हमारा गोवा का प्लान भी बस वहीँ भष्म हो गया। और हुज़ूर जब योजना भष्म हो गयी तो साथ में कुछ चढ़ावा तो लगना ही था। जी हाँ हमारे क्रेडिट कार्ड का बिल एक बार फ़िर अमर जवान ज्योति में सुलगते हुए लौ की मानीन्द दहक उठा। आज आलम ये है की हम महीने की तनखाह को देखते हैं और कभी अपने क्रेडिट कार्ड के बिल को। और कसम है हमे उस कार्ड दिलाने वाले की जो कभी कार्ड को बंद करवाने का ख्याल जेहन में आया हो ।

4 comments:

  1. I love your sense of humor. Enjoyed reading every word of it.
    Yeh toh wahi baat ho gayi "khaya piya kuch nahi, gilas toda bara aana".

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  2. thanks a lot for the comments :-)
    just trying to add lil bit of humour in my writing

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  3. Wah .. Shukla sahab ..
    ( tareef bhi hindi/urdu mein hi karne ki koshish karti hoon )
    Kya umda likha hai . main apne aap ko rok nahin payi hasne se.. bus baaki sab mujhe dekh kar kahin kuch aur na samjhein.. :)
    Credit card crisis se guzarna .. and har baar tabad tod tayyari karna.. aapki himmat ki daad deti hoon . Itni baar plan barbaaad hone ke baad bhi aap shopping mein kami nahin rakhte :)

    Aise hi kuch aur lekhon ka intezar rahega .. :)

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  4. Damn good, mazaa aa gaya. Khatarnaak likha hai. Planning to kya hai, agle saal ko phir se year of planning ghoshit kar dete hain. :)

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