दिमाग़ के
सारे पोर बंद हैं
न स्वाद है
न सुगंध है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
ऑंखों में खुमारी
टूटते बदन के
हर हिस्से में ख़म है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
उठती सॉंसों में
विरक्ति,
उतरती में बलगम है
ये जुकाम बड़ी बेरहम है।
कहीं छंदों का कहीं संगों का कहीं फूल बहार के खेलों का चट्टानों, झील समंदर का सुन्दर रंगीन उपवनों का ख़ुशबू बिखेरती सुगंध का, कभी रसीले पकवान...
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