कहीं छंदों का
कहीं संगों का
कहीं फूल बहार के खेलों का
चट्टानों, झील समंदर का
सुन्दर रंगीन उपवनों का
ख़ुशबू बिखेरती सुगंध का,
कभी रसीले पकवानों का।
पर जीवन नहीं जो तुमने देखा
वो तो वही जो तुमसे गुजरा!
तुम्हें जिसने तौला
तोड़ा मरोड़ा, विच्छेद किया!
नहीं वो जो तुमने सुना
जीवन वही जिसने तुम्हें चुना,
रुकने, मुड़ने पर मजबूर किया
सपनों को चकनाचूर किया!
नहीं बिछाई फूलों की शैय्या
थाम कर रोका जिसने
अनवरत चलता नीरस सा पहिया,
ठोक बजाकर मजबूत किया
चरित्र जिसने साबूत किया।
अंधकार जब भी छाए गहन
जलाकर ख़ुदी को बनो इंधन
जब जब हो संशय, चिंता, शोक, समर
न डिगाए कोई, बस लक्ष्य शिखर!
अवरोध विशाल, भीमकाय लगे
बोझिल मन, असहाय लगे
और लगे अभाव जब किसी मित्र का
आवाहन करो उसी चरित्र का!
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