पहल में झिझक
न हल, न सबक
न शब्द में वज़न
बहाने दो दर्जन!
आगे न आना
बस बातें बनाना
खुद को रिझाना,
समझाना।
आड़ फिर ढूँढते
परतों को ओढ़ते
कश्मकश में डूबते,
विकल्प में ही घूमते।
न पीछे, न आगे
तटस्थ बस जमे रहे
बेख़ुदी में सने रहे,
आज भी छोटे ही बने रहे!
दिन बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...
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