Sunday, October 03, 2021

मुस्कुरा दिए घनश्याम

था दम्भ और स्वार्थ का

समर घनघोर।

द्वारिका प्रासाद में

लगी थी होड़ -

दम्भ सिरहानेचरण पे स्वार्थ

शैय्या पर सोए रणछोड़।


माँगने पहुँचे थे अनुदान

संकट थी ये बृहत विकराल,

दिया विकल्प सरल सा,

खूब रहस्यमयी थी ये गहरी चाल;

एक तरफ नारायणी सेना

दूसरी ओर निहत्थे गोपाल।


स्वार्थ रहा अचल अडिग,

मॉंग लिया निरस्त्र का साथ,

हुआ दम्भ मदमस्त

बोला अनुज की नहीं टलेगी बात 

स्वार्थ की बुद्धि पे बलिहारी 

अंक लगा उसेगदगद हुए जगन्नाथ 


 किया विश्वरुप का बखान

 दिया धर्म कर्म का कोई ज्ञान

 बाँधा कोई शब्द पाश

बुनते एक और अनोखी रास,

किया उद्घोष - 

थामेंगे वो नंदी घोष की कमान

सत्यापित करते अपना समाधान 

बस मुस्कुरा दिए घनश्याम।

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