कभी-कभी उन यादों में
मन भटक-भटक सा जाता है
जब दिन सुनहरे होते थे,
शामों में ख़ुशबू तैरती थी
रातों में गीतों और सुरों की
निश्छल चॉंदनी छलकती थी।
बचपन के उन अनमोल पलों में
जब मन भेद नहीं जानता था,
उत्साह, जोश के धवल रंगों में
दिशाहीन, दौड़ता फिरता था।
एकविध इस जीवन में
बचपन फिर मिल ही जाता है।
किलकारी किल्लौल में जैसे
दिल रम सा जाता है।
मन बोझिल जब भी होता है
और बिटिया दौड़
गले लग जाती है;
मन को शीतल,
चित्त को प्रफुल्लित कर जाती है।
पेट, छाती और तन पर
कूद, कुलाँचे मारती है,
अपने नन्हीं बोझरहित काया से
हर बोझ हवा कर जाती है।
दिन फिर सुनहरे हो जाते हैं,
शामों में ख़ुशबू भर जाती है
रातों में नवल गीतों और
सुरों की अल्हड़ चॉंदनी,
खूब छलकती जाती है।
इन खुशियों के पल का फिर
नया ही मोल मिल जाता है!
No comments:
Post a Comment