Thursday, September 10, 2020

भेल पूरी वाला

शिक्षा के उद्यान में

सरल से परिधान में

ठेले पर भर चटकीले पकवान

स्वाद बॉंटने आता था

अरे नहीं

वो तो प्यार बॉंटने आता था


मिला मिला कर पूरी भेल

थोड़ी मूरीखूब कड़वा तेल

थोड़ी चटनीपापड़ी थोड़ी

ज़्यादा के लिए फिर जी हुजूरी

हमें ज़िंदगी के रस दिखाने आता था

अरे नहीं,

वो तो प्यार बॉंटने आता था!


पापड़ी पर जम कर दही का तड़का,

उसके उपर जीरा का छौंका

मिर्च लालइमली खट्टी

हरी हरी धनिया की पत्ती

जीभ पर रंग लगाने आता था

अरे नहीं,

वो तो प्यार बॉंटने आता था!

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...