न हो मन की,
या उसकी लय धुन में
रोक टोक हो
किसी परिजन की;
मुँह फुलाए,
चेहरा तमतमाए
कभी एक कोने में
सिमटकर,
कभी दूर भाग कर सबसे
झुंझलाते चीखते,
चीजों को फेंकना सीख रही है
चेहरा तमतमाए
कभी एक कोने में
सिमटकर,
कभी दूर भाग कर सबसे
झुंझलाते चीखते,
चीजों को फेंकना सीख रही है
अब वो रुठना सीख रही है।
Waah ! saral aur sundar..Satik
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