Monday, March 09, 2020

मार्ग पट

ख़ुद टूटा बिखरा हूँ,
कैसे तुम्हें सहेजूँगा 
हार का स्वाद जीव्हा पर मेरे,
जीत कैसे तुम्हें चखाऊँगा 
हाथ संकोच ने है जकड़े मेरे,
परों को कैसे उड़ान दे पाऊँगा 
ज़बान पर सोच का है बोझ पड़ा,
तुम्हें बेबाक कैसे बनाऊँगा!

हॉं ये है मेरे अनुभव का लेखा
ऊँच नीच जो भी मैंने देखा
तौल नापकर तुम्हें है आंकना
राह प्रशस्त आप तुम्हें है करना।

No comments:

Post a Comment

दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...