Monday, October 21, 2019

ठाठ

उस पुआल की टाट 
के नीचे
बिना खाट
ठाठ 
सेजो सोखी थी
ज़िन्दगी 

गर्माकर ललाट
चानन के घाट
जब खुशी 
नहीं मिलती थी हाट
मेंजो सोखी थी 
ज़िन्दगी 

उसी ठाठ 
की आस में
आज रहे हैं दिन
पाट,
साल यूं दौड़ रहे हैं
कि हठात् 
जब हो साल 
साठ
तब होगा क्या ज्ञान,
कैसे खो दी
ज़िन्दगी 

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...