उस पुआल की टाट
के नीचे
बिना खाट
ठाठ
से, जो सोखी थी
ज़िन्दगी
गर्माकर ललाट
चानन के घाट
जब खुशी
नहीं मिलती थी हाट
में, जो सोखी थी
ज़िन्दगी
उसी ठाठ
की आस में
आज रहे हैं दिन
पाट,
साल यूं दौड़ रहे हैं
कि हठात्
जब हो साल
साठ
तब होगा क्या ज्ञान,
कैसे खो दी
ज़िन्दगी
No comments:
Post a Comment