अलट पलट
कभी पलट अलट
नट के जैसा
थिरक थिरक
इस करवट
कभी उस करवट,
अपनी नन्हीं काया को
कभी सिकुड़ सिमट
हाथ पैर को छिटक छिटक
कभी बनाती उस काया को
विकराल विकट।
सुबह लातों घूसों की
खटपट
नींद भगाती जैसे
झटपट
पर ऑंख खुलते, मिलता
एक उपहार विशेष,
अबोध, निश्छल
मुस्कान निष्कपट!
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