वहाँ की सफाई देख कर मैं दंग रह गया। फर्श बिल्कुल चमक रहा था, ३-४ गद्देदार सोफे करीने से एक तरफ लगे थे। एक ड्रेसिंग टेबल हॉल के एक कोने में लगा हुआ था और वहीँ पर सामने एक छोटा-सा स्टूल भी था। उसके साथ वाले दीवार पर एक कम-से-कम ६० इंच का बड़ा सा टीवी फर्श के करीब पांच फीट ऊपर बड़े ही सुदृढ़ ढंग से लोहे या स्टील के दो रॉड पर टिकाया गया था। फॉल्स सीलिंग और पर्दों के अलावा एक तरफ बाथरूम भी था।
ये था होस्पेट जंक्शन का ए सी वेटिंग हॉल जहाँ पर हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं था। मैंने घुसते ही वेटिंग हॉल का मुआयना किया और सामान रख सीधे बाथरूम चला गया। वहां की भी सफाई से मैं भौंचका रह गया।
आमतौर पर वेटिंग रूम के बाथरूम के बारे में जितना काम कहा जाये उतना ही अच्छा होता है। पर वहां पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बाथरूम थे। वक़्त अभी काफी था क्यूंकि ट्रेन आने में कम-से-कम एक घंटा था। बाथरूम के लाइट को ऑन करते हुए मैंने देखा की सामने वाश बेसिन है और फिर दोनों तरफ २ दरवाज़े जो की दोनों बाथरूम के थे। मैं फिर वापस आकर ड्रेसिंग टेबल के पास वाले सोफे पर बैठ गया। वो भी एक बार बाथरूम होकर सारे लाइट्स बुझा कर पास में आ बैठी।
मैं जहाँ पर बैठा था वहां से वेटिंग रूम का दरवाज़ा बिलकुल सामने दिखता था और मेरी दाहिनी तरफ ड्रेसिंग टेबल का शीशा था। उस शीशे से मुझे बाथरूम के दरवाज़े का प्रतिबिम्ब दिख रहा था। अभी तक हमें यही आश्चर्य होता रहा कि कोई भी वेटिंग रूम में क्यों नहीं है? मेरे सामने वेटिंग रूम के दरवाज़े से कई यात्री झांकते हुए गए पर कोई भी अंदर नहीं आया। अभी वहां बैठे १० मिनट ही हुए थे और हमलोग यही बात कर रहे थे की कोई भी अंदर क्यों नहीं आ रहा।
इसी बीच मेरी नज़र ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर गयी, उस पर जो दरवाज़े का प्रतिबिम्ब था वो मुझे कुछ अटपटा सा लगा। या तो बाथरूम का पर्दा टेढ़ा लगा हुआ था या फिर बाथरूम की तरफ से हवा चल रही थी जिसके कारण पर्दा उड़ता सा प्रतीत हो रहा था। मैंने उस परदे को ध्यान से देखा और फिर उसके प्रतिबिम्ब को और फिर दोनों में इतना फ़र्क़ था की मैं समझ नहीं पा रहा था की ये कैसा नज़र दोष है। फिर मन का वहम समझ मैंने ये बात उसे नहीं बताई।
हम दोनों ने एक साथ उठने का परिक्रम किया पर सोफे से उठ नहीं पाये। दोनों ज़ोर से चीखने लगे और हमें पूरा भरोसा था की बहार से झांकते हुए लोग कम-से-कम हमारी चीख सुनकर अंदर आएंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैंने एक बार फिर से उस शीशे की तरफ देखा, उस शीशे में वेटिंग रूम बिलकुल बदला सा लग रहा था। वो ३-४ सोफे एक के ऊपर एक पड़े हुए थे, वो टीवी चकनाचूर होकर नीचे गिरा पड़ा था। दीवार जैसे खून की तरह सुर्ख़ हो गए थे। तभी अचानक मैंने देखा की फॉल्स सीलिंग से कुछ टपक रहा है और साथ ही मेरी पीठ पर भी कुछ गीला सा महसूस हुआ। डर से चीखते हुए जैसे ही मैंने पलट कर देखा, पूरा वेटिंग रूम अंधकार में डूब गया।
रात के बारह बज गए होंगे। एक कुत्ता उस दीवार को खरोंच रहा था। उसके रोने की आवाज़ काफी दर्दनाक थी। ऐसा लग रहा था की उस दीवार के पीछे उसे कुछ भयावह दुर्घटना का आभास हो रहा था। उस दीवार के ऊपर एक जलते-बुझते बल्ब की रौशनी, सीमेंट के पीछे दबे शब्दों को उजागर कर रहे थे। लिखा हुआ था - AC वेटिंग हॉल!!
ये था होस्पेट जंक्शन का ए सी वेटिंग हॉल जहाँ पर हम दोनों के अलावा कोई भी नहीं था। मैंने घुसते ही वेटिंग हॉल का मुआयना किया और सामान रख सीधे बाथरूम चला गया। वहां की भी सफाई से मैं भौंचका रह गया।
आमतौर पर वेटिंग रूम के बाथरूम के बारे में जितना काम कहा जाये उतना ही अच्छा होता है। पर वहां पर महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बाथरूम थे। वक़्त अभी काफी था क्यूंकि ट्रेन आने में कम-से-कम एक घंटा था। बाथरूम के लाइट को ऑन करते हुए मैंने देखा की सामने वाश बेसिन है और फिर दोनों तरफ २ दरवाज़े जो की दोनों बाथरूम के थे। मैं फिर वापस आकर ड्रेसिंग टेबल के पास वाले सोफे पर बैठ गया। वो भी एक बार बाथरूम होकर सारे लाइट्स बुझा कर पास में आ बैठी।
मैं जहाँ पर बैठा था वहां से वेटिंग रूम का दरवाज़ा बिलकुल सामने दिखता था और मेरी दाहिनी तरफ ड्रेसिंग टेबल का शीशा था। उस शीशे से मुझे बाथरूम के दरवाज़े का प्रतिबिम्ब दिख रहा था। अभी तक हमें यही आश्चर्य होता रहा कि कोई भी वेटिंग रूम में क्यों नहीं है? मेरे सामने वेटिंग रूम के दरवाज़े से कई यात्री झांकते हुए गए पर कोई भी अंदर नहीं आया। अभी वहां बैठे १० मिनट ही हुए थे और हमलोग यही बात कर रहे थे की कोई भी अंदर क्यों नहीं आ रहा।
इसी बीच मेरी नज़र ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर गयी, उस पर जो दरवाज़े का प्रतिबिम्ब था वो मुझे कुछ अटपटा सा लगा। या तो बाथरूम का पर्दा टेढ़ा लगा हुआ था या फिर बाथरूम की तरफ से हवा चल रही थी जिसके कारण पर्दा उड़ता सा प्रतीत हो रहा था। मैंने उस परदे को ध्यान से देखा और फिर उसके प्रतिबिम्ब को और फिर दोनों में इतना फ़र्क़ था की मैं समझ नहीं पा रहा था की ये कैसा नज़र दोष है। फिर मन का वहम समझ मैंने ये बात उसे नहीं बताई।
तभी बाथरूम से फ्लश की आवाज़ आई। हम दोनों एक साथ चौंक उठे क्यूंकि उस वक्त तक हमारे सामने कोई भी उस बाथरूम की तरफ नहीं गया था और बारी बारी से हम बाथरूम गए थे तो किसी और के वहां होने की गुंजाईश ही नहीं थी। फिर अंदर लाइट भी तो बुझी हुई थी। किसी तकनीकी कारण को दोष देते हुए हम फिर से अपने स्मार्टफोन्स पर व्यस्त हो गए। थोड़ी देर बाद मेरी नज़र फिर से ड्रेसिंग टेबल के शीशे पर पड़ी और इस बार जो मैंने देखा उससे मेरे रौंगटे खड़े हो गए - उस शीशे में बाथरूम के लाइट्स ऑन दिख रहे थे। मैंने एक बार दिल की तसल्ली के लिए फिर से बाथरूम की तरफ देखा और मेरा रोमांच मेरी चीख में तब्दील हो गया। मैंने उसकी तरफ देखा और उसका सफ़ेद चेहरा देख ये समझ गया की ये मेरे मन का वहम नहीं।
हम दोनों ने एक साथ उठने का परिक्रम किया पर सोफे से उठ नहीं पाये। दोनों ज़ोर से चीखने लगे और हमें पूरा भरोसा था की बहार से झांकते हुए लोग कम-से-कम हमारी चीख सुनकर अंदर आएंगे, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैंने एक बार फिर से उस शीशे की तरफ देखा, उस शीशे में वेटिंग रूम बिलकुल बदला सा लग रहा था। वो ३-४ सोफे एक के ऊपर एक पड़े हुए थे, वो टीवी चकनाचूर होकर नीचे गिरा पड़ा था। दीवार जैसे खून की तरह सुर्ख़ हो गए थे। तभी अचानक मैंने देखा की फॉल्स सीलिंग से कुछ टपक रहा है और साथ ही मेरी पीठ पर भी कुछ गीला सा महसूस हुआ। डर से चीखते हुए जैसे ही मैंने पलट कर देखा, पूरा वेटिंग रूम अंधकार में डूब गया।
रात के बारह बज गए होंगे। एक कुत्ता उस दीवार को खरोंच रहा था। उसके रोने की आवाज़ काफी दर्दनाक थी। ऐसा लग रहा था की उस दीवार के पीछे उसे कुछ भयावह दुर्घटना का आभास हो रहा था। उस दीवार के ऊपर एक जलते-बुझते बल्ब की रौशनी, सीमेंट के पीछे दबे शब्दों को उजागर कर रहे थे। लिखा हुआ था - AC वेटिंग हॉल!!
No comments:
Post a Comment