Monday, November 14, 2011

खामोश शब्द

खामोश शब्द, अन्तर्द्वंद विकट
क्या छुपा है, क्या प्रकट
खोखला मन, विषम तन्हाई
कोरे कागजों के पुलिंदे, न खून न स्याही .

लिखने को उठते हैं हाथ
तरंगो से बिलखते जज़्बात
कुछ छुप जाते हैं
कुछ छप जाते हैं.

सोच का विशाल अम्बार
विफल शब्दों की लम्बी कतार,
बौखलाते बेकार.
अनकही - अकड़ कर खड़ी विरुद्ध
अनगिन शब्द व्यर्थ, लाचार. 

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...