कल रात नींद नहीं आई
लगता है ज़िन्दगी ने अपना बोझ बढ़ा दिया था
बोझ और भार में यही फर्क होता होगा -
भार से सुनते हैं कोयला हीरा हो जाता है,
और बोझ से शायद कोयला धूल!!
बात वहीँ रुक जाती तो हवा हो जाती,
कुछ पनपता जेहन में और नींद में घुल-मिल जाता,
पर कुछ सिसकियों ने बात जकड ली,
कुछ घुला नहीं, धुला नहीं
और हवा हुई तो वो हुई नींद.
लगता है ज़िन्दगी ने अपना बोझ बढ़ा दिया था
बोझ और भार में यही फर्क होता होगा -
भार से सुनते हैं कोयला हीरा हो जाता है,
और बोझ से शायद कोयला धूल!!
बात वहीँ रुक जाती तो हवा हो जाती,
कुछ पनपता जेहन में और नींद में घुल-मिल जाता,
पर कुछ सिसकियों ने बात जकड ली,
कुछ घुला नहीं, धुला नहीं
और हवा हुई तो वो हुई नींद.
No comments:
Post a Comment