ले चल उस छोर जहाँ,
सरल, शिथिल मन हो,
मशाल जले ज्ञान की
ओजपूर्ण हवाओं मे
वेग भी प्रचंड हो.
आग की जो हो बात,
प्रबुद्ध, शुद्ध आग हो,
भाव रहे पाक साफ़,
सोच ही अखंड हो.
प्रकाष्ठ खुलते हो जहाँ
विचारों का सैलाब हो,
होड़ मे उठें जो शब्द
कीर्ति का हो आवाहन,
यश की ही जय हो.
धुंध को रौंदती,
सशक्त,साहसी रंग हो
ले चल उस छोर जहाँ
सरल, शिथिल मन हो.
सरल, शिथिल मन हो,
मशाल जले ज्ञान की
ओजपूर्ण हवाओं मे
वेग भी प्रचंड हो.
आग की जो हो बात,
प्रबुद्ध, शुद्ध आग हो,
भाव रहे पाक साफ़,
सोच ही अखंड हो.
प्रकाष्ठ खुलते हो जहाँ
विचारों का सैलाब हो,
होड़ मे उठें जो शब्द
कीर्ति का हो आवाहन,
यश की ही जय हो.
धुंध को रौंदती,
सशक्त,साहसी रंग हो
ले चल उस छोर जहाँ
सरल, शिथिल मन हो.
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें .
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , अपनी राय देकर हमारा मार्गदर्शन करें.
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत शुक्रिया. बस प्रयासरत हूँ की अपनी मातृभाषा से जुड़ा रहूँ
ReplyDeleteआभार .
matrbhasha se jude ho aur kya khoob jude ho :) .. I dont know how this text comes in hindi..
ReplyDeleteBut bahut hi badhiya likha hai ..i liked this line , Bhav rahe pak saaf , soch hi akhand ho
Keep writing :)
and the raw new look of the blog.. good change.. i like it
ReplyDeletethanks sonal...my blog was missing ur comments ;)
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