Wednesday, February 16, 2011

रंगरेज

नील नदी के पानी मे
एक ग़ज़ब सा उबाल उठ आया है
टूनिसिया की गलियों से लेकर
मिस्र का तहरीर उबल आया है।
अल्गेरिया, येमेन सब हुए हैं शामिल,
रुकना लगता है अब मुश्किल...
ये क्रांति तो फिजा बदलने आया है।

हमारे वतन का मौसम देखिये,
सर्द माहौल यूँ छाया है,
लूट-खसोट की हवा है बहती -
घोटाला, भ्रष्टाचार गहन घिर आया है...
लेकिन यहाँ कैसे हो क्रांति,
कैसे आये वो उबाल,
जब विचार ही अपना अँधा है...
उबले पानी भी कैसे,
जब नील नहीं यहाँ -
कावेरी, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, यमुना...गंगा है।

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दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...