Friday, February 04, 2011

गिलौरी का ज्ञान

गिलौरी का जब जिक्र चला
जोश हमारा परवान चढ़ा -
सुपाड़ी, तम्बाकू का ज्ञान नहीं
मीठे का ही बस शौक रखते हैं,
पर शब्दों के जब बाण चढ़ें
तो अर्थ-शून्य शास्त्रार्थ का भी हुनर रखते हैं ।

फिर वाकयुद्ध के इस समर मे
खोखली श्रेष्ठता का बाण हमने ताना
कहा - ज्ञान जहाँ है ही नहीं
वहां बेतुक, बेख़ौफ़ बोलते निकल जायेंगे
बिन बाधा, अवरोध बिना
एकाकी राज बजाते बढ़ जायेंगे ।

इस वजनदार संवाद का हम
अभी आनंद भी न उठा पाए थे -
की भीमकाय उपहास भरे शब्दों से
हुआ हमारा काम तमाम ।
सच ही कहा था किसी संत फकीर ने -
गिलौरी खाया कर गुलफाम,
जुबां पर रखा करती है लगाम ।

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दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...