Wednesday, March 04, 2009

अवरोध

वो अडिग, अटल चट्टान खड़ा
लहरों के बीच अडा;
चंचला चपला लहरों की -
अठखेलियों को देख हँसा

होड़ में वो उठ आती हैं,
बस चरण निर्मल कर जाती हैं ।
लहरों को भान हमेशा है
सामंजस्य नीयमशीलता ही उनका पेशा है ।

चट्टान मंद-मंद मुस्काता है,
अपनी उत्कृष्टता पर इठलाता है ।
व्यर्थ उसका अभिमान है,
जीवन चक्र से लगता अनजान है ।

अनभिज्ञ चट्टान के विचारों से
लहरें अविरत कर्म में लगी रहती हैं ।


रुकने का जब नाम न हो
चट्टानों को भी झुकना पड़ता है,
अलंकार रहित, अविरल इस दृढ़ जीवन की
अपनी ही सुन्दरता है ।।

No comments:

Post a Comment

दिन

दिन   बीत रहे हैं गुज़र रहे हैं फिसल रहे हैं खिसक रहे हैं लुढ़क रहे हैं नहीं रुक रहे हैं। हम गिन रहे हैं जोड़ रहे हैं जोह रहे हैं खो रहे हैं...