आज इस चरमान्त पर
सोचता हूँ मैं खड़ा
कैसे पहुंचा यहाँ तक
गुमाँ भी ना हो सका
धुंध पीछे दिख रही बस
सब कुछ उसमे है दबा
आगे दिखता क्यूँ नहीं कुछ
विचारों में क्यूँ द्वंद्व हुआ
एक अदना सी ज़िन्दगी से
हर किसी को यही डर है
पलट कर देखें उसे हम
और शून्य का एहसास है!!
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