तुम गगन, तुम्ही क्षितिज
गर्त तुम, अन्धकार तुम
ज्ञान के प्रकाष्ठ तुम
तुम्ही साहस, भय तुम
तुम्ही छल, पाप तुम
तुम विरोध, अवलंब तुम
तुम त्याग, प्रलोभन तुम
तुम विशाल, तुम प्रगाढ़
सूक्ष्म तुम, संकीर्ण तुम
तुम मंथन, शिथिल तुम
तुम लगाव, विरह तुम
तुम इर्ष्या, अवरोध तुम
तुम्ही मोड़, राह तुम
अन्जाम तुम
हे मानव मन -
जीवन सागर की अथाह में
तुम अमृत, विष भी तुम ।।
Thursday, March 05, 2009
Wednesday, March 04, 2009
अवरोध
वो अडिग, अटल चट्टान खड़ा
लहरों के बीच अडा;चंचला चपला लहरों की -
अठखेलियों को देख हँसाहोड़ में वो उठ आती हैं,
बस चरण निर्मल कर जाती हैं ।चट्टान मंद-मंद मुस्काता है,
जीवन चक्र से लगता अनजान है ।
अनभिज्ञ चट्टान के विचारों से
रुकने का जब नाम न हो
चट्टानों को भी झुकना पड़ता है,
अलंकार रहित, अविरल इस दृढ़ जीवन की
अपनी ही सुन्दरता है ।।
Tuesday, March 03, 2009
चरमान्त
आज इस चरमान्त पर
सोचता हूँ मैं खड़ा
कैसे पहुंचा यहाँ तक
गुमाँ भी ना हो सका
धुंध पीछे दिख रही बस
सब कुछ उसमे है दबा
आगे दिखता क्यूँ नहीं कुछ
विचारों में क्यूँ द्वंद्व हुआ
एक अदना सी ज़िन्दगी से
हर किसी को यही डर है
पलट कर देखें उसे हम
और शून्य का एहसास है!!
सोचता हूँ मैं खड़ा
कैसे पहुंचा यहाँ तक
गुमाँ भी ना हो सका
धुंध पीछे दिख रही बस
सब कुछ उसमे है दबा
आगे दिखता क्यूँ नहीं कुछ
विचारों में क्यूँ द्वंद्व हुआ
एक अदना सी ज़िन्दगी से
हर किसी को यही डर है
पलट कर देखें उसे हम
और शून्य का एहसास है!!
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