उत्सुक सी
वो अब हर कोने को टटोल रही है
कभी लुढ़ककर,
कभी पकड़कर
अपनी दुनिया का विस्तार कर रही है
पैरों पे अपना वजन
तौल रही है
डगमगा कर
गिरती सम्भलती है
उठकर गिरती,
गिरकर फिर उठती
जैसे मानव मन की उपमा दे रही है
अब वो चलना सीख रही है
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