वो रोकर अपनी बात कहती है
भूख हो या हो कोई कष्ट
या ध्यान कभी जो हो भ्रष्ट!
दिन में कम,
लम्बी कहानियॉं हर रात कहती है
वो रोकर अपनी बात कहती है।
तान लम्बी कभी,
कभी हिचकियों से शुरुआत करती है।
पेचीदे नहीं
सरल सीधे सवालात करती है
ऑंखें मूंद कर भी
क्या खूब खुराफात करती है
वो रोकर अपनी बात कहती है।
भूख हो या हो कोई कष्ट
या ध्यान कभी जो हो भ्रष्ट!
दिन में कम,
लम्बी कहानियॉं हर रात कहती है
वो रोकर अपनी बात कहती है।
तान लम्बी कभी,
कभी हिचकियों से शुरुआत करती है।
पेचीदे नहीं
सरल सीधे सवालात करती है
ऑंखें मूंद कर भी
क्या खूब खुराफात करती है
वो रोकर अपनी बात कहती है।
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