पिताम्बरी ओढ़े देवाधिदेव हुए प्रकट
चपला सी संगिनी थी उनके निकट
हर पीत पल्लव को कर सजग
लो देखो स्वर्णिम हुआ शरद।
हाथ पैर जुड़े कैसे एक हुआ कर रहे थे
कहीं वरदान तो कहीं दुआ कर रहे थे
इस प्रलय का न दो अब साथ,
दर्शन दो हे दीनानाथ!
संगिनी, शीत लहर बन जब हुई हावी
देवाधिदेव ने नीरद की घूंघट काढ़ी
अवनी-अम्बर जम बने हिमसागर
क्षमा देव! अब हो जाओ उजागर!
वसन्त भी कब से बाट जोह रहा था
रंगों को एक एक कर जोड़ रहा था,
स्वर्णिम छटा बिखरा, समेटो अपनी जयजयकार
अभिनंदन देव! अलसायी वसुन्धरा का हो अब श्रृंगार!
चपला सी संगिनी थी उनके निकट
हर पीत पल्लव को कर सजग
लो देखो स्वर्णिम हुआ शरद।
हाथ पैर जुड़े कैसे एक हुआ कर रहे थे
कहीं वरदान तो कहीं दुआ कर रहे थे
इस प्रलय का न दो अब साथ,
दर्शन दो हे दीनानाथ!
संगिनी, शीत लहर बन जब हुई हावी
देवाधिदेव ने नीरद की घूंघट काढ़ी
अवनी-अम्बर जम बने हिमसागर
क्षमा देव! अब हो जाओ उजागर!
वसन्त भी कब से बाट जोह रहा था
रंगों को एक एक कर जोड़ रहा था,
स्वर्णिम छटा बिखरा, समेटो अपनी जयजयकार
अभिनंदन देव! अलसायी वसुन्धरा का हो अब श्रृंगार!
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