रंग पुता है पलकों पर
कि नक़ाब कस कर बाँधा है?
देखो इस भीड़ की भेड़ चाल
जिधर मोड़ा उधर का रुख करता है।
भूल के अपनी एकाकी
बेड़ी बाँध बस बढ़ना है,
लक्ष्य न ध्येय की कोई सोच
बस चलना है क्यूंकि चलना है।
कभी सोचा कि क्या पायेगा तू
पृथक अगर बढ़ जायेगा?
इन पगडंडियों पर तो कई चले
नए पथ प्रशस्त तू कर जायेगा।
ऋक्षराज यहाँ कोई नहीं
गुण तेरे कौन यहाँ बखान करे
सुशुप्त शक्तियों का कौन आवाहन करे,
रौद्र रुप खुद ही अब धरना है
अंजनेय खुद ही तुझे बनना है।
कि नक़ाब कस कर बाँधा है?
देखो इस भीड़ की भेड़ चाल
जिधर मोड़ा उधर का रुख करता है।
भूल के अपनी एकाकी
बेड़ी बाँध बस बढ़ना है,
लक्ष्य न ध्येय की कोई सोच
बस चलना है क्यूंकि चलना है।
कभी सोचा कि क्या पायेगा तू
पृथक अगर बढ़ जायेगा?
इन पगडंडियों पर तो कई चले
नए पथ प्रशस्त तू कर जायेगा।
ऋक्षराज यहाँ कोई नहीं
गुण तेरे कौन यहाँ बखान करे
सुशुप्त शक्तियों का कौन आवाहन करे,
रौद्र रुप खुद ही अब धरना है
अंजनेय खुद ही तुझे बनना है।
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