खिड़की से आसमान ताक रहा था -
एक हल्का फुल्का सा बादल,
जैसे एक बहुत बड़े बादल से बने
रथ को खींच रहा था।
नैपथ्य में सुदूर सफ़ेद बादलों का एक बिखरा समूह था
शायद ऊपर से देख कर इठलाते हुए
मुस्कुरा रहा था।
ये छोटू लगा रहा
खींचता रहा,
और धरती पर नीचे उसका साया पड़ा -
छोटू का तो नहीं
लेकिन उस रथ का।
नीचे धरातल पर
घटा छा गयी,
मल्हार गए जाने लगे,
तपती धरती को जैसे चैन की साँस मिली।
आस में लगे उस कृषक के चेहरे पर
मुस्कान आ गयी।
कितना फरक है उस सुदूर
कर्तव्यविमुख उन बादलों में
और झुर्री पड़े इस चेहरे पर !
एक हल्का फुल्का सा बादल,
जैसे एक बहुत बड़े बादल से बने
रथ को खींच रहा था।
नैपथ्य में सुदूर सफ़ेद बादलों का एक बिखरा समूह था
शायद ऊपर से देख कर इठलाते हुए
मुस्कुरा रहा था।
ये छोटू लगा रहा
खींचता रहा,
और धरती पर नीचे उसका साया पड़ा -
छोटू का तो नहीं
लेकिन उस रथ का।
नीचे धरातल पर
घटा छा गयी,
मल्हार गए जाने लगे,
तपती धरती को जैसे चैन की साँस मिली।
आस में लगे उस कृषक के चेहरे पर
मुस्कान आ गयी।
कितना फरक है उस सुदूर
कर्तव्यविमुख उन बादलों में
और झुर्री पड़े इस चेहरे पर !
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