यूँ ही कब कहाँ ये जीत पाती
हर मोड़ पर सकुचाती
हर चोट पर मुरझाती
एक नज़र पडे तो इतराती
अनजान कभी इसे है भाता
एक रंग ही कभी रम जाता
कभी प्यास इसे जगाती
गहन सोच कभी थपथपा जाती
हर मोड़ पर सकुचाती
हर चोट पर मुरझाती
एक नज़र पडे तो इतराती
अनजान कभी इसे है भाता
एक रंग ही कभी रम जाता
कभी प्यास इसे जगाती
गहन सोच कभी थपथपा जाती
कभी कोई बात ठेंस लगाती
फिर खुद ही अकुलाती, इतराती
संभल जाती,
यूँ ही कब कहाँ ये जीत पाती।
फिर खुद ही अकुलाती, इतराती
संभल जाती,
यूँ ही कब कहाँ ये जीत पाती।