आजकल मुझे भी डर लगता है
उम्मीदों की क़तार देख डर लगता है
दबे हुए शब्दों में एक दबी हुई ज़िन्दगी देख डर लगता है
हर दौड़ को पीछे खींचते सोच से डर लगता है
आस भरी आँखें देख डर लगता है
डर मिटटी भरे उन सोने के बर्तनों से लगता है .
जो थे मार्गदर्शक उनको भटकते देख डर लगता है .
ढकोसली हँसी , बनावटी चेहरे देख डर लगता है
गलतियों को पर्दा डालती बातों से डर लगता है
अवरोधरहित बहाव में पेचीदे मोड़ों को देख डर लगता है .
उम्मीदों की क़तार देख डर लगता है
दबे हुए शब्दों में एक दबी हुई ज़िन्दगी देख डर लगता है
हर दौड़ को पीछे खींचते सोच से डर लगता है
आस भरी आँखें देख डर लगता है
डर मिटटी भरे उन सोने के बर्तनों से लगता है .
जो थे मार्गदर्शक उनको भटकते देख डर लगता है .
ढकोसली हँसी , बनावटी चेहरे देख डर लगता है
गलतियों को पर्दा डालती बातों से डर लगता है
अवरोधरहित बहाव में पेचीदे मोड़ों को देख डर लगता है .
No comments:
Post a Comment